
राजस्थान का नाम सुनते ही गर्म हवाओं से भरे रेगिस्तान, रेट के टीले, ऊँट और ग्रामीण पृष्ठभूमि के रंगबिरंगे राजस्थानी परिधान पहने हुए लोगों के दृश्य आँखों के सामने तैरने लगते हैं. राजस्थान का जयपुर और उसके आसपास का ढूंढाड़ क्षेत्र में मैं घूम चूका हूँ और यहाँ वाक़ई कुछ ऐसे ही वातावरण देखने को मिलता है, मारवाड़ क्षेत्र में मेरा अभी तक जाना नहीं हो पाया परन्तु वहां के बारे में जितना मैंने पढ़ा है उससे यही पता चलता है कि मारवाड़ बिलकुल रेगिस्तानी और सूखा क्षेत्र है.
पिछले दिनों उदयपुर फ़ूड टूर के दौरान एक नए राजस्थान के दर्शन का अवसर मिला जिसे राजस्थान का मेवाड़ क्षेत्र कहा जाता है यह क्षेत्र बाकी राजस्थान से बिलकुल ही अलग है और यहाँ आने वाले किसी नए व्यक्ति को पहली नज़र में लगता ही नहीं कि यह राजस्थान है, ना तो यहाँ पर रेत, ना ही गर्म हवाएं, नीले पानी से भरपूर झीलें, आसपास छोटे-छोटे पहाड़, खुला और नीला आसमान. एक बार को यूं लगता है कि किसी ने कश्मीर का इक टुकड़ा फ्रिज से निकाल कर यहाँ लाकर रख दिया हो.
सच में बिना बर्फ का कश्मीर है उदयपुर. यहाँ की फतह सागर झील बिलकुल कश्मीर की डल झील की कलर फोटोकॉपी है. आस-पास के पहाड़ आपको कश्मीर में होने का भ्रम दिलाते हैं. शाम को सूर्यास्त के समय झील के किनारे का नजारा कुछ यूँ होता है जैसे सूर्य एक इंद्रधनुष को पीछे आसमान में छोड़ते हुए धीमे-धीमे झील में ही समा रहा हो. ऐसा अदभुत दृश्य बहुत ही यूनिक है और उदयपुर की पहचान है.
दूसरी ओर पिछोला झील का अलग ही नज़ारा है. पिछोला झील के नीले पानी पर तैरती हुई में नाव पर बैठ कर किनारे पर स्थित सिटी पैलेस और झील के मध्य में एक टापू पर स्थित जगमंदिर को निहारना एक अलग ही अनुभव देता है जिसे शब्दों में बयां करना असंभव है. नीले आसमान और नीले पानी में से कौन अधिक नीला है यह निर्णय करना कठिन हो जाता है यहाँ पर.
सिटी पैलेस में चहलकदमी करते हुए कुछ ही देर में अपने आप को टाइम ट्रेवल करके शताब्दियों पीछे पहुँच कर एक अलग ही दुनिया की सैर करते हुए पाते हैं. सिटी पैलेस के विशाल प्रांगण में चढ़ाई-उतराई वाली सपाट सड़कों पर चलते हुए अपने दोनों ओर बने हुए सैंकड़ों वर्ष पुराने कलात्मक परकोटे, दीवारें, झरोखे देखते हुए, उनमें से छन कर आती हुई ठंडी हवा के झोंकों को अपने चेहरे पर स्पर्श करना एक अलौकिक अनुभव है. इस अनुभव को बार-बार लेने के लिए मन यूं लालायित हो जाता है कि आपको समय का पता ही नहीं चलता कि कब पैलेस बंद होने का समय हो जाता है.
सिटी पैलेस के पीछे जगदीश मंदिर जाने वाली ढलवां सड़क का अपना अलग संसार है. पैलेस से निकल कर जब आप इस सड़क पर आते हैं तो पाते हैं कि सदियों पुराना अनुभव जो आप अभी महल के अंदर लेकर आये हैं वह आपके साथ अभी भी चल रहा है और आप अभी भी शताब्दियों पहले के काल में ही विचरण कर रहे हैं. इस सड़क पर सैंकड़ों वर्ष पुरानी हवेलियां, मंदिर आदि एक कतार से हैं और उनके बीच है पुरानी-पुरानी दुकानें जिनपर मिलने वाला सामान भी उतना ही यूनिक है जितना यह पूरा क्षेत्र यूनिक है.
खाने-पीने में उदयपुर का अंदाज़ बाकी राजस्थान से बिलकुल अलग है. खान-पान के लिहाज़ से उदयपुर को #छोटा_बम्बई कहना ग़लत नहीं होगा. यहाँ के खान-पान में बम्बईय्या और गुज़्ज़ू टच इतना अधिक है कि पारम्परिक राजस्थानी स्वाद स्वयं यहाँ पर एक अतिथि है. यहाँ का स्ट्रीट फ़ूड ठेठ राजस्थानी तीखा ना होकर गुजराती मीठेपन पर आधारित है और खाने-पीने का ढंग बिलकुल बम्बईय्या है. दुकानों के साइनबोर्ड यहाँ पर हिंदी के साथ-साथ गुजराती में भी लिखे हुए मिलना एक आम बात है. ठीक उसी तरह से यहाँ के स्थानीय लोग भी राजस्थानी की बजाय गुजराती मिक्स हिंदी में बात करते हैं.
इसके अलावा उदयपुर शहर शायद राजस्थान का सबसे मॉडर्न और अपडेटेड शहर है और हो भी क्यूँ ना, देश की कौनसी ऐसी प्रसिद्ध हस्ती है जिसका उदयपुर आना-जाना ना हो. फ़िल्मी सितारे, बड़े-बड़े उद्योगपति, सेलेब्रिटीज़ यहाँ अक्सर आते जाते रहते हैं. यही कारण है कि यहाँ पर पुरानी सभ्यता के साथ साथ आधुनिक सुख-साधन भी उसी अनुपात में उपलब्ध हैं. अनेकों पाँच सितारा होटल, एक से एक देसी-विदेशी रेस्टोरेंट, आलीशान हवाई अड्डा, ओला-ऊबर की सुविधा, बार, सलून, स्पा सब कुछ तो है उदयपुर में जो एक अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल पर चाहिए होता है.
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