ॐ ।।
#भारत_के_5000_स्वाद #पार्ट_103
#Udaipur #उदयपुर
#शुद्ध_देसी_घी_या_वनस्पति_घी
मित्रों……..एक प्रसिद्ध पुरानी फ़िल्म है #बावर्ची…..इस फ़िल्म का एक डायलॉग है कि #पकाने_वाला_अगर_अच्छा_हो_तो_वो_कद्दू_से_भी_मटन_का_स्वाद_पैदा_कर_सकता_है
कुछ ऐसा ही अनुभव सुरेश साहू जी और कैलाश साहू जी द्वारा संचालित उदयपुर के दिल्ली गेट स्थित #जय_भोले_मिष्ठान_भंडार पर हुआ जिनकी जलेबी बहुत प्रसिद्ध हैं…..इस दुकान पर यूँ तो और भी कई मिठाइयाँ बनती हैं परन्तु जलेबी यहाँ की USP है जो कि बाक़ी सब मिठाइयों की कुल मात्रा के बराबर मात्रा में अकेली ही बिकती है.
अब हुआ यूँ कि इस दुकान की जलेबी का स्वाद लेने के बाद जब साहू जी से बातचीत शुरू की तो मेरा सबसे पहला प्रश्न था कि “जलेबी तलने के लिए देसी घी आप बाज़ार से लेते हो या आपकी अपनी डेरी भी है”……मेरा प्रश्न सुन कर साहू जी मुस्कुराते हुए बोले “सर, यह जलेबियाँ हम पिछले चालीस वर्षों से #वनस्पति_घी_में_ही_बनाते_हैं”…….सचमुच बहुत हैरानी हुई कि जलेबी खाने में इतनी स्वादिष्ट और सुगंधित कि असली देसी घी में बनी हुई लग रही थी……कमाल की बात है कि वनस्पति घी का प्रयोग करके देसी घी के स्वाद वाली जलेबियाँ बन रही हैं 😃😃
अब साहू जी ने इसके पीछे का राज बताया कि कैसे पिछले चालीस वर्षों से जय भोले की जलेबी उदयपुर में एक नामी ब्रांड बनी हुई है… सबसे पहले तो यहाँ पर प्रयोग होने वाला वनस्पति घी रोज़ाना नया टिन खोल कर प्रयोग होता है…..जलेबी बनने के बाद शाम को बचा हुआ घी अगले दिन दोबारा प्रयोग में नहीं लाया जाता. बचे हुए तेल को साबुन आदि बनाने वाली फैक्टरियों को बेच दिया जाता है……यानी वनस्पति घी का सही प्रकार से प्रयोग इस जलेबी के #यूनिक_स्वाद का एक मुख्य कारण है.
इसके अलावा जलेबी बनाने के लिए मैदे ख़मीर को #ठीक_आठ_घंटे_तक फूलने के लिए रखा जाता है ना कम ना ज़्यादा…..यानी कि दिन में जितने घंटे भी जलेबी बनती है उसके लिए आठ-आठ घंटे पहले से मैदा का घोल अलग अलग बना कर रखा जाता है. वाक़ई ग़ज़ब की तकनीक और टाइमिंग है स्वाद मेंटेन करके रखने के लिए 😊
जलेबी बनती भी यहाँ पर इतनी कुरकुरी है कि बनते ही भुरभुरी होकर टूटने लगती है…..इसीलिए यहाँ की जलेबी स्वाद के साथ-साथ देखने में भी थोड़ी अलग और यूनिक है है (कृपया फ़ोटो देखें)
अधिक मात्रा में जलेबी बना कर पहले से नहीं रखी जाती बल्कि ग्राहकों की भीड़ को देखते हुए उसी मात्रा में साथ-साथ उतनी ही बनायी जाती है जितनी 4-5 मिनट में बिक जाए.
सुरेश साहू जी और कैलाश साहू जी अपनी देख-रेख में स्वयं ही जलेबी बनवाते हैं. दुकान लगभग 40 वर्ष पहले इनके दादा जी ने शुरू की थी और 2/- रुपए किलो जलेबी बेचना शुरू किया था…..अभी इसका प्रति किलो का दाम 160/- रुपए है और दुकान सुबह 8 बजे से रात को 10 बजे तक खुलती है.
गूगल लोकेशन : https://maps.google.com/…
SwadList रेटिंग : 5 स्टार ⭐️ ⭐️ ⭐️ ⭐️ ⭐️
आपका अपना …. पारुल सहगल 😊