ॐ ।।
#भारत_के_5000_स्वाद_Part92
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#Ambala_अंबाला
कन्फ़्यूज़्ड_स्वाद 🤔
आज का स्वाद कुछ अलग हट के है 😊
एक ही स्थान पर #एक_जैसे_नाम_वाली_आठ_दुकानें…..सब एक से एक बड़ी और भव्य……सब दुकानों के साइन बोर्ड पर लिखा हुआ कन्फ़्यूज़ करने वाले वाक्य #यह_असली_दुकान_है और #हमारी_कोई_शाखा_नहीं_है.
अंबाला कैंट रेलवे स्टेशन के सामने जी टी रोड पर यही दृश्य देखने को मिलता है जहां पर लाइन से आठ ढाबे हैं और सबके नाम में #पूरण_सिंह का नाम आता है.
इतिहास टटोलने पर पता चलता चलता है कि कई तरह की अपुष्ट कहानियाँ है इस ढाबे की …… एक मान्यता है कि #सरदार_पूरण_सिंह ने 60 के दशक में #सेना_से_सेवानिव्रत होने के बाद सेना में जवानों को दिए जाने वाले भोजन की ही तरह का भोजन विशेषकर मांसाहार का ढाबा अंबाला में अपने घर पर जो कि अंबाला रेलवे स्टेशन के सामने एक गली में है वहाँ पर शुरू किया.
एक अन्य किवदंती है कि पूरण सिंह भारत विभाजन के समय स्यालकोट से आए थे और उसी समय से नॉन वेज खाने का ठेला लगाते थे जिसने कालांतर में एक विशाल ढाबे का रूप लिया….. बताते हैं कि उस समय उनका ढाबा इतना चलता था कि आसपास के ढाबे वाले पूरण सिंह को #शराब_पिला_देते थे ताकि वे शाम को अपना ढाबा ना खोल सकें और दूसरे ढाबे वालों को ग्राहक मिल सकें.
ख़ैर 90 के दशक तक पूरण सिंह का ढाबा अंबाला से गुजरने वाले हरेक नॉन वेज प्रेमी के लिए एक पक्का अड्डा बन चुका था और यहाँ की #मटन_करी, #चिकन_करी, #कीमा_कलेजी आदि देसी पंजाबी स्टाइल में बनायी गयी आइटम्ज़ बहुत प्रसिद्ध हो चुकी थीं.
इस ढाबे को कवर करते समय सबसे बड़ी समस्या आयी कि असली को पहचाना कैसे जाए ताकि सही स्वाद की जानकारी लोगों तक पहुँच पाए…….कुछ स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चला कि पूरण सिंह की कोई संतान नहीं थी और वे अपना ढाबा अपने गोद लिए गए पुत्र को देकर चल बसे थे.
कुल मिला कर पूरण सिंह के दो ढाबे हैं जिनके असली होने का अंदेशा है…..एक तो बाहर मेन रोड पर #पूरण_सिंह_का_मशहूर_विशाल_ढाबा जिनका दावा है कि पूरण सिंह जी ने मरने से पहले अपना ब्रांड नेम और असली दुकान और रेसिपी के राज उनको बेच दिए थे…..कई स्थानीय लोगों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है…..दूसरा है #असली_पूरण_सिंह_का_न्यू_ढाबा जहां पर पूरण सिंह जी का गोद लिया हुआ बेटा आज भी गली के अंदर स्थित ढाबा चला रहा है…….इन दो ढाबों के अलावा यहाँ के बाक़ी मिलते-जुलते नाम वाले ढाबे सिरे से नक़ली हैं.
दोनो ढाबों पर थोड़ा-थोड़ा स्वाद लिया गया और पाया कि गली के अंदर वाले ढाबे का स्वाद अधिक अच्छा है……हालाँकि इस गली के अंदर वाले ढाबे की हालत दिखने में कोई विशेष अच्छी नहीं थी परंतु दीवारों पर लगी हुई सेलिब्रिटीज की यहाँ पर खाना खाते हुए फ़ोटो इस बात की गवाही दे रही थीं की शायद कभी यही एकमात्र पूरण सिंह का ढाबा होता था……पहले यह ढाबा केवल शाम चार बजे तक खुलता था परन्तु अब रात नौ बजे तक चालू रहता है.
गूगल लोकेशन : https://goo.gl/maps/AjXvswsid3MYmo1y8
SwadList रेटिंग : 5 स्टार *****
नॉन वेज खाने वालों के लिए यहाँ जाकर स्वाद लेना अवश्य बनता है…..जब भी जाइए तो खाने से पहले अपने स्तर पर असली-नक़ली के बारे में एक बार अवश्य छान-बीन कर लें…. सच में आसपास के लोगों से बहुत सी रोचक कहानियाँ सुनने को मिलेंगी.
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आपका अपना ….. पारुल सहगल 😊