ॐ ।।
#भारत_के_5000_स्वाद_Part21
#SwadList
नमस्कार मित्रों 🙏
आज फिर से आपके लिए एक दक्षिण भारतीय मीठा स्वाद शेयर करने जा रहा हूँ जो कि मिलता है कर्नाटक के एक शहर “धारवाड़” में और इसका नाम है बाबूसिंह ठाकुर का “धारवाड़ पेड़ा”.
इसको बनाने के लिए भैंस के दूध और चीनी का इलाइची के साथ प्रयोग होता है. यह गहरे लाल रंग में सिंके हुए खोए से बनता है और बिलकुल चाकलेटी स्वाद लिए हुए होता है.
उत्तर भारत में जहाँ उत्तर प्रदेश के “मथुरा पेड़ा” और राजस्थान के “चिड़ावा पेड़ा” को एक सुघड़ आकार में बनाया जाता है जो कि बनने के बाद थोड़ा ठोस होकर उसी आकार में बना रहता है वहीं “धारवाड़ पेड़ा” बिलकुल नरम होता है और इसी कारण इसका आकार बिलकुल बेढब और टेढ़ा-मेढ़ा सा रहता है. पेड़े को आपस में चिपकने से बचाने के लिए इस के ऊपर चीनी का बारीक बुरादा डाला जाता है.
सुदूर दक्षिण भारत में ख़ास उत्तर भारतीय स्वाद की उपस्थिति के पीछे 150 साल पुरानी कहानी है. 19वीं शताब्दी में उत्तर भारत में प्लेग फैलने के कारण “राम रतन सिंह ठाकुर” नामक हलवाई ने उत्तर प्रदेश के “उन्नाव” से धारवाड़ पलायन किया और वहाँ पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध भैंस के दूध के पेड़े बना कर बेचना शुरू किया. दक्षिण भारतीयों को यह नया स्वाद भा गया और उनका धँदा चल निकला.
आज ठाकुर परिवार के वंशजों की धारवाड़ में अलग अलग नाम से पेड़े की दुकानें हैं और इनके कद्रदान विदेशों तक इसको मंगवाते हैं. मुख्य और पुरानी दुकान “बाबूलाल ठाकुर पेड़ा” के नाम से धारवाड़ के लाइन बाज़ार में है.
मैंने अपने धारवाड़ प्रवास के दौरान इसका ख़ूब स्वाद लिया था और पैक करके घर के लिए भी लिया था. इसकी शेल्फ़ लाइफ़ लगभग 10 दिन है और दाम 300/- रुपए प्रति किलो है.
मित्रों …. आपके कामेंट्स और सुझाव अवश्य दीजिएगा ताकि मैं इस स्वाद के सफ़र को और बेहतर बना कर आपके साथ शेयर कर सकूँ. सिरीज़ आपके आशीर्वाद से बहुत अच्छी चल रही है 🙏
जो मित्र इस सिरीज़ को पहली बार पढ़ रहे हैं वे इसकी पिछली कड़ियों को मेरी वॉल पर पढ़ सकते हैं 🙏
आपका अपना …. पारुल सहगल 😊