भारत के 5000 स्वाद (भाग 17)
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नमस्कार मित्रों 🙏
आज का स्वाद नवाबों के शहर लखनऊ से जो कि अपने विशेष खान-पान और खास मीठी लखनवी भाषा के लिए जाना जाता है. आज से सात वर्ष पूर्व लखनऊ प्रवास के दौरान पहली बार “टुंडे कबाब” का स्वाद चखने को मिला था.
“टुंडे कबाब” लखनऊ की एक विश्व प्रसिद्ध मांसाहारी डिश है जो कि अपने आप में एक इतिहास समेटे हुए है और इसके बारे में अलग अलग किस्से प्रसिद्ध हैं. कहते हैं कि सत्रहवीं शताब्दी में अवध के नवाब वाज़िद अली को कबाब खाना बहुत पसंद था और जब बुढ़ापे में उनके दांत गिरने लगे और वे कुछ भी चबाने में असमर्थ हो गए तो उन्होंने एक ऐलान किया कि जो भी ऐसी मांसाहारी डिश का अविष्कार करेगा जिसको चबाने की आवश्यकता ना हो उसे पुरुस्कार स्वरुप शाही खानसामा नियुक्त किया जायेगा. नवाब की ही रसोई में एक सहायक के तौर पर काम करने वाले हाजी मुराद अली शाह ने मटन को बारीक पीस कर उसमें कई अन्य मसाले मिला कर इस कबाब का आविष्कार किया. हाजी मुराद अली शाह का एक हाथ टूटा हुआ था और वह एक ही हाथ से काम कर पाते थे इसी कारण से यह कबाब “टुंडे का कबाब” नाम से प्रसिद्ध हुआ.
1905 में हाजी परिवार ने लखनऊ के “चौक” नामक स्थान पर अकबरी गेट के पास इस कबाब को बना कर आम जनता को बेचना शुरू किया. इसको बनाने में 135 मसाले प्रयोग किये जाते हैं जिनमें आम तौर पर प्रयोग होने वाले मसालों इलाइची, दही, पिपरमिंट, जीरा, गरम मसाला, सिरका, देसी घी, इलाइची के अलावा पपीता, चन्दन की लकड़ी का चूर्ण, लौंग का धुवाँ, भुना हुआ बेसन आदि के साथ साथ ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से मंगवाए जाने वाले कुछ गुप्त मसाले भी प्रयोग होते हैं. सारे मसाले इस परिवार की महिलाएं मिक्स करती हैं और यह काम गुप्त रूप से किया जाता है ताकि इसका फार्मूला किसी को पता ना चले.
इसका दाम 50 रुपए प्रति प्लेट (4 पीस है) और इसको उलटे तवे के परांठे और चटनी-प्याज के साथ परोसा जाता है. लखनऊ में इसी परिवार के सदस्यों द्वारा कुछ और स्थानों पर भी इसी कबाब की दुकानें चलायी जाती हैं परन्तु इस सबसे पुरानी दूकान पर आज भी कबाब खाने के लिए लोग लाइन में लगने के लिए तैयार रहते हैं.
कभी यहाँ कबाब खाने के लिए जाएं तो तैयार होकर जाइये कि आपको यहाँ अपना नंबर आने के लिए काफी प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है.
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अगली बार एक और नए स्वाद के साथ मिलते हैं जल्दी ही…. तब तक के लिए नमस्कार.🙏
आपका अपना ….. पारुल सहगल 😊