भारत के 5000 स्वाद (भाग 12)
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नमस्कार मित्रों
आज आपके लिए फिर एक बार दक्षिण भारत का एक अलग प्रकार का यूनिक स्वाद लेकर हाज़िर हूँ.
यह अपने आप में अनूठा स्वाद मूल रूप से कर्नाटक में मैसूर से है. इसका नाम है “रागी मुद्दय”या सरल भाषा में “रागी बाल्स”. कुछ वर्ष पूर्व अपने बैंगलोर और मैसूर के प्रवास के दौरान कई बार भिन्न-भिन्न अवसरों पर स्वाद लेने का अवसाद मिला. इसे कर्नाटक के अलावा आन्ध्र और तमिलनाडु में भी खाया जाता है.
इसको बनाने के लिए रागी (फ़िंगर मिलेट) का प्रयोग होता है जो कि एक प्रकार का अनाज है. यह अनाज मुख्यतः दक्षिण भारत में उगाया और खाया जाता है. “रागी मुद्दय” का अर्थ है रागी के चावल से बने हुए लम्प्स या गोले. इसको बनाने के लिए रागी के आटे को भाप से पकाते हुए एक गाढ़ा घोल तैयार किया जाता है फिर इसे थोड़ा सा सख़्त करके इसके माध्यम आकार के गोले बनाए जाते हैं.
इन भाप से पके हुए मुद्दय को बेसारू (दाल और लहसुन से बना हुआ साम्बर) के साथ या फिर मटन के साथ खाया जाता है. इसके साथ खाई जाने वाली चटनी को “गोज्जू” कहते हैं जो कि इमली और आम के मिश्रण से बनती है.
इसे खाने का तरीक़ा भी कुछ हट कर है. इस मुद्दय को तीन-चार टुकड़ों में तोड़ कर बेसारू या मटन में डाल दिया जाता है और फिर इसको मुँह में रख कर जीभ और तालु के बीच में दबा कर इसके रस का स्वाद लिया जाता है. फिर इसे बिना चबाए ही निगला जाता है. थोड़ा अजीब है परंतु इसे खाने का पारम्परिक और वास्तविक तरीक़ा यही है.
रागी खाने में काफ़ी पौष्टिक होती है इसलिए यह “रागी मुद्दय” और बेसारू का कॉम्बिनेशन कर्नाटक के ग्रामीण लोगों की विशेषत: किसानों की रोज़मर्रा की खुराक है.
बैंगलोर और मैसूर जैसे शहरों में यह लगभग हरेक स्थानीय रेस्टौरेंट के मेन्यू में मिलेगा. मैंने “शिव सागर” और “कामत” जो कि दक्षिण भारत की विख्यात लोकल फ़ूड चेन हैं के कई रेस्टोरेंट्स में इसका स्वाद लिया है.
इसका दाम लगभग 40-50 रुपए प्रति प्लेट ( 2पीस ) से शुरू होता है
आप भी कभी दक्षिण भारत की यात्रा पर जाएँ तो इसका स्वाद अवश्य लें 😊
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नए-नए स्वाद आप तक पहुँचाने के वादे के साथ आज के अलविदा 🙏 आपका सप्ताहांत शुभ रहे 🙏
पारुल सहगल