दिल्ली के 500 स्वाद (भाग 9)
नमस्कार मित्रों 🙏
एक एक करके नए नए स्वाद मैं आपके साथ शेयर करता जा रहा हूँ और आप सब मित्रों के बहुत अच्छे अच्छे प्रोत्साहित करने वाले कमैंट्स और सुझाव भी मिल रहे हैं जिसके लिए मैं आप सब का धन्यवाद करता हूँ.
आज फिर एक बार दिल्ली से बहुत दूर का स्वाद आपके साथ शेयर कर रहा हूँ.
मित्रों आज एक अपने एक दक्षिण भारतीय मित्र के विशेष अनुरोध पर एक दक्षिण भारतीय स्वाद से आपका परिचय कराने जा रहा हूँ जिसका नाम है #करदंट (kardantu) यह मूल रूप से कर्णाटक और महाराष्ट्र के बॉर्डर के पास स्थित के “गोकक” कसबे से है और लगभग पूरे कर्णाटक में बहुत प्रसिद्ध मिठाई है. पिछले वर्ष अपने “बेलगाम” प्रवास के दौरान मुझे इस मिठाई का स्वाद चखने का अवसर प्राप्त हुआ (बेलगाम, गोकक से लगभग 60 किलोमीटर दूर है)
इसको बनाने में गोंद, देसी घी, बेसन, गुड़, खस-खस और ड्राई फ्रूट्स का प्रयोग होता है. इसके इतिहास के बारे में खोजबीन करने पर पता चलता है कि गोकक के रहने वाले “श्री डुन्डप्पा कलबुर्गी” इस मिठाई को सन 1947 से पहले गोंद और बेसन से बना कर सड़क किनारे एक ठेले पर बेचते थे. एक दिन किसी ने उनको इसमें गुड़ डालने कि सलाह दी. गुड़ डालने से इसकी बिक्री इतनी बढ़ी कि आज तक यह दक्षिण भारत में हरेक त्यौहार में बहुत शौंक से खायी जाती है.
इसका टेक्सचर दिखने में खुरदुरा होता है और यह गोंद के कारण एकदम लचीला होता है. इसको बनाने के दौरान गुड़ और गोंद को एक निश्चित तापमान तक गर्म करके मिलाया जाता है जिससे ठंडा होने पर इस में एक विशेष स्वाद आ जाता है. इसे बर्फी कि तरह चौकोर टुकड़ों में काट कर या लड्डू की तरह गोल गूंथ कर बनाया जाता है.
गोकक में “सदानंद स्वीट्स” जो कि डुन्डप्पा कलबुर्गी के वंशजों द्वारा संचालित कि जा रही है, की दुकान पर यह मिठाई खरीदने के लिए लोग लाइन लगा कर खड़े हुए देखे जा सकते हैं. मुझे स्वयं यह इतनी अच्छी लगी कि अपने मित्र से कह कर इसको कूरियर से मंगवा चूका हूँ. वास्तव में देखा जाये तो अपने यहाँ उत्तर भारत के “ढोडा” की ही तरह यह मिठाई अपने आप में एक पौष्टिक आहार भी है.
तो मित्रों … लीजिए स्वाद “करदंट” (kardantu) का और मैं मिलता जल्दी हूँ जल्दी ही आपके लिए और नए नए स्वाद के साथ 🙏